नई दिल्ली, 04 दिसंबर। केंद्र सरकार नहीं चाहती कि दोषी ठहराए गए नेताओं के उम्रभर चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगे। सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर दायर संशोधित जनहित याचिका का केंद्र सरकार ने पिछले दिनों विरोध किया। केंद्र का तर्क है कि निर्वाचित प्रतिनिधि कानून से समान रूप से बंधे हैं। कानून मंत्रालय ने न्यायालय में दायर हलफनामे में कहा है कि जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के प्रावधानों को चुनौती देने के लिये जनहित याचिका में संशोधन के आवेदन में कोई गुण नहीं है। केंद्र ने बीजेपी नेता अश्विनी कुमार की याचिका पर यह जवाब दिया है। चुनावी पैनल ने इस सुझाव का पहले समर्थन किया था मगर कानून मंत्रालय ने कहा कि इस मामले पर ब्यूरोक्रेट्स की तरह नेताओं से व्यवहार करने का कोई तुक नहीं है।
भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने संशोधित जनहित याचिका लगाई थी। वह जन प्रतिनिधित्व कानून के अंतर्गत दो साल या इससे अधिक की सजा पाने वाले नेताओं सहित सभी दोषी व्यक्तियों के जेल से रिहा होने के बाद छह साल तक चुनाव लड़ने के अयोग्य होने की बजाय उम्र भर के लिये प्रतिबंध चाहते हैं। केंद्र सरकार ने जवाब में कहा कि पब्लिक इंटरेस्ट फाउण्डेशन बनाम केन्द्र मामले में शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में इस विषय पर विचार करके अपनी व्यवस्था दी है। और वैसे भी एक निर्वाचित प्रतिनिधि की अयोग्यता के बारे में कानून में विस्तार से प्रावधान है।
दागी नेताओं पर अपने इस स्टैंड के बाद नरेंद्र मोदी सरकार को सोशल मीडिया पर आलोचना झेलनी पड़ रही है। कुछ साल पहले चुनाव आयोग ने ताउम्र बैन की वकालत की थी। ट्विटर पर लोग सवाल पूछ रहे हैं कि राजनीति से भ्रष्टाचार दूर करने का वादा करने वाली भाजपा इस कदम के खिलाफ क्यो है। बीजू जनता दल (BJP) के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ अमर पटनायक ने लिखा है कि उन्हें याचिकाकर्ता की बात में दम नजर आता है। उन्होंने लिखा, “सरकारी नौकरों को दोषी पाए जाने के बाद अयोग्य करार दे दिया जाता है, वैसा सख्त नियम नेताओं पर लागू नहीं होता। ऐसा क्यों? केंद्र का विरोध समझ से परे है।”
याचिकाकर्ता उपाध्याय का तर्क था कि ब्यूरोक्रेट्स और यहां तक कि जजों को भी दोषी पाए जाने पर परमानेंटली हटा दिया जाता है, नेताओं पर ऐसी कोई कार्रवाई नहीं होती। उन्हाकेंने कहा कि अधिकतर को कुछ समय के लिए चुनाव लड़ने से रोक दिया जाता है मगर इससे सदन में आपराधिक बैकग्राउंड वाले नेता कम नहीं होता। केंद्र ने दावा किया कि वर्तमान कानूनों में इस मुद्दे से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं।